बार चुनाव से पहले दीवानी व फौजदारी बार एसोसिएशन में दो फाड़: कार्यकारिणी भंग या विवाद की रणनीति?

एक पक्ष ने कार्यकारिणी को किया बर्खास्त, दूसरे ने बताया साजिश; अधिवक्ताओं में रोष और असमंजस

मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी” /गौतमबुद्धनगर
जनपद दीवानी एवं फौजदारी बार एसोसिएशन, गौतमबुद्धनगर में सोमवार को जो कुछ हुआ, वह न केवल अधिवक्ता बिरादरी को झकझोर गया बल्कि न्यायपालिका के दरवाज़ों पर भी भारी सवाल छोड़ गया। अधिवक्ता संदीप भाटी (चिटहैरा) पर हुए हमले के बाद जहां एक पक्ष ने बार की वर्तमान कार्यकारिणी को बर्खास्त कर उन्हें अंतरिम कार्यवाहक अध्यक्ष घोषित कर दिया, वहीं निवर्तमान अध्यक्ष प्रमेंद्र भाटी एडवोकेट ने इन सभी दावों को सिरे से खारिज करते हुए इसे “पूर्वनियोजित राजनीतिक साजिश” करार दिया।


एक पक्ष का दावा: जानलेवा हमला, आमसभा द्वारा कार्यकारिणी बर्खास्त

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, सुबह करीब 10:30 बजे अधिवक्ता चौक पर बैठक के दौरान अधिवक्ता संदीप भाटी (चिटहैरा) पर लाठी, डंडे, पिस्टल और तमंचे से हमला किया गया। आरोप सीधे निवर्तमान अध्यक्ष प्रमेंद्र भाटी एडवोकेट पर लगे, जिनके साथ कथित रूप से कुछ अधिवक्ता और बाहरी तत्व मौजूद थे। गंभीर रूप से घायल हुए संदीप भाटी को अधिवक्ताओं ने तुरंत समर्थन दिया और एक आपातकालीन आमसभा बुलाकर कार्यकारिणी को बर्खास्त कर दिया।

सैकड़ों अधिवक्ताओं ने आमसभा में हिस्सा लेकर संदीप भाटी को कार्यवाहक अध्यक्ष घोषित किया और प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि 10 जून तक एफआईआर दर्ज नहीं होती, तो थाना सूरजपुर का घेराव किया जाएगा।


दूसरे पक्ष का जवाब: “बार की प्रतिष्ठा और समाज सेवा पर हमला”

इसी विवाद पर विजन लाइव से बात करते हुए निवर्तमान अध्यक्ष प्रमेंद्र भाटी एडवोकेट ने साफ कहा कि “आज भी मैं ही बार अध्यक्ष हूं, कार्यकारिणी पहले की तरह काम कर रही है।” उन्होंने इस घटनाक्रम को अधिवक्ता राजनीति से प्रेरित बताया।

प्रमेंद्र भाटी एडवोकेट ने बताया कि बार कार्यकारिणी वर्तमान में 750 से अधिक साइबर ठगी पीड़ित गरीबों, जिनमें रिक्शा चालक और अन्य श्रमिक वर्ग शामिल हैं, के करीब डेढ़ करोड़ रुपए की फंसी धनराशि को रिलीज करवाने के लिए प्रयासरत थी। पुलिस कमिश्नर श्रीमती लक्ष्मी सिंह ने इस संबंध में बार से सहयोग मांगा था।

बार कार्यकारिणी ने 27 जरूरतमंद पीड़ितों की सूची तैयार की और 22 को नोटिस जारी कर आवश्यक प्रक्रिया शुरू कर दी। लेकिन इसी प्रयास को कुछ अधिवक्ताओं ने “स्वार्थवश अपने व्यवसाय पर चोट” मान लिया और साजिशन कार्यकारिणी के खिलाफ माहौल बना दिया। प्रमेंद्र भाटी एडवोकेट का यह भी दावा है कि झगड़ा दरअसल वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव भाटी से हुई मारपीट से शुरू हुआ, जिसमें छीना-झपटी के दौरान कुछ अधिवक्ताओं को चोट लगी।


अब सवाल ये उठता है कि सच्चाई क्या है?

  1. क्या वाकई हमला पूर्वनियोजित था या फिर महज़ आपसी धक्का-मुक्की को राजनीतिक रंग दिया गया?
  2. क्या कार्यकारिणी की बर्खास्तगी संवैधानिक है या यह असंतुष्ट गुट की रणनीति है?
  3. गरीबों की मदद के नाम पर हो रही कार्रवाई से किसे आपत्ति और क्यों?

न्यायपालिका की निगाहें और अधिवक्ताओं की अगली चाल

यह विवाद अब केवल बार अध्यक्ष पद का नहीं, बल्कि पूरे जनपद न्यायिक तंत्र की गरिमा और अधिवक्ताओं की एकता की परीक्षा बन चुका है। जिला जज को दोनों पक्षों की सूचना दी जा चुकी है। अब देखना होगा कि पुलिस प्रशासन और न्यायपालिका इस पर क्या रुख अपनाते हैं। जहां एक पक्ष इसे सत्ता परिवर्तन का जनमत बता रहा है, वहीं दूसरा पक्ष इसे बार के समाजसेवी उद्देश्यों को बाधित करने वाली साजिश मान रहा है। दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन सच वही सामने आएगा जो जांच और न्यायिक हस्तक्षेप के बाद प्रमाणित होगा।

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